क्रन्तिकारी विचारधारा के कवि दर्शन बेज़ार
+विश्वप्रताप भारती
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दर्शन
बेज़ार तेवरी विधा की अग्रणीय पंक्ति के सिपाही हैं। उन्होंने अपनी तेवरियों में
भारतीय संस्कृति की महत्ता, देश-प्रेम
और आधुनिक चिन्तन को विशेष रूप से अभिव्यक्ति दी है। उनकी तेवरियों में प्रकृति का
सौन्दर्य नहीं मिलता, उसकी
दयनीय दशा भी दीखती है। उनकी तेवरियां सपनों की दुनिया नहीं दिखाती,
बल्कि वर्तमान की विसंगतियों,
विद्रूताओं और विरोधाभास पर लगातार प्रहार करती
हैं।
ऐसी ही
जीवन की तमाम विसंगतियों, विद्रूपताओं,
विरोधाभास के बीच दर्शन बेजार का नया तेवरी संग्रह
आया है- ‘ये ज़न्जीरें
कब टूटेंगी’।
चन्द्रशेखर आजाद, भगतसिंह,
सुभाषचन्द्र बोस, वीर
सावरकर की विचारधारा से प्रभावित दर्शन बेजार की पहली तेवरी संघर्ष करने वालों को
समर्पित है जो अपने हक के लिए किसी न किसी से लड़ रहे हैं-
लड़
लड़ाई और भूखे पेट तू
अब बदलना है तुझे तकदीर को।
आँख हो
तेरी सदृश ज्वालामुखी
दहकता अंगार कर ले पीर को।
भ्रष्टाचार
की जड़ें हमारे चारों ओर गहरी पैठ बना चुकी हैं । कवि इस भ्रष्टाचार रूपी दानव को
साफ-साफ देख रहा है। वह शोषण-मुक्त समाज देखना चाहता है। उसकी पीड़ा सबकी पीड़ा
बनकर उभरती है-
पिछले
वर्षों में हुई है ये तरक्की गांव में
सिर्फ
कागज पर बनी है सड़क पक्की गांव में।
फसल अबके
बरस की सब सूद में जाती रही
हर तरफ
तन को सुखाती भूख झलकी गांव में।
तेवरीकार
ने महंगाई से जूझते परिवार का चित्रण पत्नी द्वारा पति को लिखे गये पत्र में बड़ी
सहजता से किया है। परिवार के लिए कुछ न कर पाने की पीड़ा को अलग-अलग प्रकार से
व्यक्त करना ऐसी मानसिक प्रक्रिया से जोड़ती है जो हू-ब-हू हमारे साथ है-
पाती नहीं
तुम्हारी आयी अब घर जल्दी आ जाओ,
खर्च हो
चुका पाई-पाई, अब घर
जल्दी आ जाओ।
कितने
दिन काटेगी अम्मा, फटी-पुरानी
धोती में
कुछ तो
होगी पास कमाई, अब घर
जल्दी आ जाओ।
छोटी
बिटिया हफ्तों से, स्कूल
नहीं जा पाती है,
उसकी फीस
नहीं भर पाई, अब घर
जल्दी आ जाओ।
तेवरीकार
ने देश के अतीत का इतिहास अपनी यादों में सजा रखा है,
इसलिए उसे गर्व के साथ कह जाना स्वाभाविक है। जैसे-
जब
गुलामी के नशे ने एशिया भरमा दिया,
तब अकेले
हिन्द ने यूरोप को थर्रा दिया।
सर कफन
बांधे फिरे आजाद, बिस्मिल
या भगत,
तख्ते-लंदन
पर उन्होंने कहर ही बरपा दिया।
तेवरीकार
ने यह भी स्वीकार किया है कि हमें आजादी अधिक हाथों के एक हाथ में एकत्रित होने से
मिली-
साथ
मिलकर चल पड़े हिन्दू-मुसलमां-सिक्ख सभी,
तब
तिरंगे को सभी ने गगन में फहरा दिया।
वर्तमान
पीढ़ी के अत्यधिक वैचारिक टकराव व अंध आधुनिकता की होड़ में सब कुछ गंवा देने से
भी तेवरीकार आहत है। वह कहता है-
दोस्तो
रखना नजर फिर देश के टुकड़े न हों,
रोशनी से
हो न वंचित फिर कहीं अपना ‘दिया’।
प्रस्तुत
संग्रह में अधिकांश तेवरियां अपने हक के लिए लड़ती दिखती हैं। तेवरीकार दर्शन
बेजार मार्क्स से प्रभावित है। वह स्वयं दबे-कुचलों,
मजलूमों की आवाज बनने की बजाय उन्हें आवाज देने में
विश्वास रखते हैं। और उन्हें विश्वास है कि एक न एक दिन-
दिल का
जुनून जब भी बगावत पे आयेगा,
तय है कि
इन्कलाब फिजाओं में छायेगा।
अतः यह
कहना-‘ ये ज़ंजीरें कब टूटेंगी’
की तेवरियां सामाजिक असमानता एवं विसंगतियों पर
पूरे जोर से लगातार प्रहार करती हैं तो यह पूरा-पूरा सच है। और मानव की बौद्धिक
चेतना को जागृत करने का सच्चा प्रयास है। यह कार्य कोई ‘दर्शन’
ही कर सकता है। इसलिए दर्शन बेजार को बधाई।
-------------------------------------------------------------------------------- +विश्वप्रताप भारती, बरला,
अलीगढ़-उ.प्र.- 20212
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